भगवान भी बुराई को पूरी तरह से समाप्त नहीं कर सकते हैं..


Possibilityplus.in में आज आप सभी को एक ऐसी जानकारी मिलने वाली है जो बड़ी ही खास है। हम सभी को यह पता है कि भगवान बहुत ही शक्तिशाली है, बल्कि इसकी शक्ति की कोई सीमा भी नहीं है। लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं जिनके आगे भगवान भी बेवस है। 

उन्हीं में से एक है कि भगवान बुराई को पूरी तरह से समाप्त नहीं कर सकते हैं  । अब शायद आपमें से किसी को यह लग रहा होगा कि यह बिल्कुल गलत और बेतर्क है, तो इसमें भी आपकी भी कोई गलती नहीं है। तो हम कुछ ऐसी बातें और तर्क करके देखेंगे।   क्या है इन सभी बातों की सच्चाई,  अब तर्क देखने के बाद ही पता चलेगा।


अच्छाई और बुराई का तर्क :

   च्छाई और बुराई दोनों ही एकही सिक्के के दो पहलू हैं। इसका मतलब यह है कि जहाँ अच्छाई रहेगी वहाँ बुराई जरूर मौजूद होगी  ।  भगवान को अच्छाई और सच्चाई का प्रतीक और शैतान को बुराई की प्रतीक माना जाता है, परन्तु जब बुराई नहीं होगी तो च्छाई का मतलब नहीं रह जायेगा। अगर मान लिजिए भगवान ने बुराई को पूरी तरह से समाप्त कर दिया तो क्या होगा ? मैं यह नहीं कह रहा कि भगवान के पास बुराई समाप्त करने की शक्ति नहीं है । परन्तु भगवान ( ईश्वर ) इसे पूरी तरह से समाप्त नहीं करेंगे। तो कुल मिलाकर यह कहना गलत नहीं होगा कि भगवान बुराई को पूरी तरह से समाप्त नहीं कर सकते हैं। 
अब वैज्ञानिक तर्क देखिए - - -

चूँकि  अच्छाई और बुराई दोनों ही एकही सिक्के के दो पहलू हैं। इसलिए अगर अच्छाई या बुराई दोनों में से किसी एक पहलू हम किसी तरह समाप्त करने की कोशिश करते हैं तो दूसरे  पहलू का अस्तित्व भी समाप्त होने लगता है। 
इस बात और आसानी से समझने के लिए हम एक सीक्का लेकर परीक्षण करते हैं । हम सब यह बात भली भांति जानते हैं कि सिक्के के दो पहलू होते हैं जिन्हें हेड और टेल कहते हैं।
अगर हम   हेड या टेल में से किसी एक को घिस - घिसकर या रगड़ कर समाप्त करेगें तो हम यह पायेंगे कि सिक्के का दूसरा पहलू भी समाप्त होने लगता है।

निचे दिए गए चित्र में यह दिखाया गया है कि अच्छाई और बुराई के मान को कितना बढ़ाया या घटाया जा सकता है। चूँकि अच्छाई और बुराई दोनों एक दूसरे के विरोधी हैं और एक दूसरे पर निर्भर भी करते हैं। अतः एक बात निकलकर सामने आ रही है कि नतो पूरी तरह से बुराई, अच्छाई पर जीत सकती है और नाहीं अच्छाई।




अतः हम यह कह सकते हैं कि इनका अस्तित्व एक दूसरे पर निर्भर करता है  । तभी तो कहावतों में यह कहा जाता है कि अमुख वस्तु और दूसरी अमुख वस्तु एकही सिक्के के दो पहलू हैं। 


   सच और झूठ  : 

 अच्छाई और बुराई की तरह ही सच और झूठ भी एक दूसरे के पूरक हैं, यानी जहाँ सच है वहीं झूठ जरूर मौजूद होगा । चाहे बहुत ही कम ही क्यों ना हो । इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भगवान से लेकर मनुष्य तक चाहे कितना भी सत्य बोलने वाला हो उसे कभी न कभी झूठ बोलने की आवश्यकता पड़ जाती है या बोल देता है, चाहे इसमें उसकी मर्जी हो या ना हो । 


जारी ✍️ है। 

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