चित्रों की अहमियत जानकार हैरान.. हो जाओगे / अब बनो वो जो दिल में है, by Possibilityplus






आँखें हमारे दिलोदिमाग का दर्पण (आईना) होती हैं। जब हम कुछ देखते हैं तो उसकी तस्वीर हमारे दिमाग ( मस्तिष्क ) में बनने लगती है और इसके बाद यह तय होता है कि अब दिल पर इसका प्रभाव कैसा होगा ।


जैसी तस्वीर वैसा ही मन या दिल का मिजाज तय होता है। दरअसल आँखें हमारे दिलोदिमाग के लिए इनपुट का काम करती हैं और इसका आउटपुट हमारे दिलोदिमाग में होता है  । इसलिए अगर हम कुछ ऐसी चीजें देखते हैं जो वास्तव में होना लगभग असंभव हो तो भी हमारा दिमाग उसे सही मानता है। 

   उदाहरण :      अगर हम कोई फिल्म ( मूवी ) देखते हैं तो हमें उस फिल्म की कहानी सही लगती है। यही नहीं बल्कि उन सभी के हाव भाव भी हमें बिलकुल सही लगता है। पर हम सब यह जानते हैं कि यह सब बनावटी होता है। 



बनावट की बात हो रही है तो इसके भी कई सवाल उठ सकतें हैं । जैसा कि हम सब जानते हैं कि फिल्में बनावटी होती हैं पर पुरी तरह से बनावटी भी नहीं हो सकता है क्योंकि कुछ सीन्स ऐसे होते हैं जिन्हें करने के लिए अभिनेता / अभिनेत्री को वैसी ही यादें या भाव अपने चेहरे पर लाना पड़ता है। इसके अलावा और भी बहुत कुछ होता है जो बनावटी नहीं हो सकता है। इसके बाद भी जो कहानी होती है वो ज्यादातर काल्पनिक ही होती है । लेकिन बहुत सारी ऐसी भी फिल्में भी हैं जो हकीकत कहानियों पर बनायी गयी या बनायी जाती हैं। 






   भावना   (  Feeling  )              



 ये 😁😀😂😊☺️😌 तस्वीरें देखते ही हमारे मन में हास्य ( हँसी ) का भाव उत्पन्न होने लगता है । ये उपर्युक्त सभी चित्र हम सभी के भाव या भावनाएँ हैं जिन्हें चित्ररूप दिया गया है और इसीलिए हमारा कैसा भी मूड ( मिजाज) हो हमें इन तस्वीरों को देखते ही हँसी का अहसास होने लगता है ।
हम सभी लोग अपने भावों को मुख्यरूप से तीन तरह से व्यक्त करते हैं :

  1. चित्र द्वारा 
  2. अपने चेहरे पर भाव लाकर 
  3. बोलकर 









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 अब शायद आपको यह लगे कि इसमें  क्या खास बात है, यह तो हमें भी पता है । तो आपको बता दें कि आपको ऐसी जानकारी मिलने जा रही है जो आपको या हम सबको अपने मूड/मिजाज/मन/दिल को जब चाहे तब अपने मुताबिक बनाया जा सकता।  अगर आपको इसका उदाहरण चाहिए तो चलिए देखिए :
हम अगर किसी बीमार व्यक्ति से मिलते हैं तो हमारा मन / मूड उसकी दशा और बातें सुनकर उदासी 😟☹️🙁😞😕 के भाव प्रदर्शित करने लगता  । और दूसरी तरफ अगर वही बीमार व्यक्ति हँसी की मजाक की बातें करता है तो हमारा मूड / मन इस दु:ख ( sad ) वाले मुड को छोड़कर हँसी वाला मुड ही पसन्द करेगा। इसके दो कारण हैं :

1. किसी भी व्यक्ति को दु:खी होना पसंद नहीं है। 
2. हँसी का भाव हमारे चेहरे पर बहुत ही सरलता से बनता है क्योंकि इसको बनने में कम ऊर्जा लगती है, जबकि दु:ख वाला भाव प्रकट करने में ज्यादा ऊर्जा लगती है। 


चलिए अब हम इसकी यानी तस्वीरों की विशेषताएँ या गुणों को जानते हैं जिनकी मदद से हम सभी जो चाहे बन सकते हैं ।
इनकी विशेषताएँ कुछ इस प्रकार है  - - -

  1. हम जो महसूस करते हैं उसे हम आकर्षित करते हैं । 
  2. जब चाहे तब अपना मूड ठीक कर सकते हैं।
  3. अगर आप बुध्दिमान बनना चाहते हैं तो इस कौन्सेप्ट ( विचारधारा ) से आसानी से बन सकते हैं ।
  4. जैसा बनना है वैसी ही तस्वीरें देखिए, बनने में मदद मिलेगी।
  5. अपनी ईच्छाओं को तस्वीररूप में वास्तविक दुनियाँ में किसी पेपर या कागज पर अंकित करिए ।
  6. जो ईच्छा तस्वीर रूप में दिलोदिमाग को सन्तुष्ट करेगी उसी में सफलता आसानी से हासिल होती है।




   उपर्युक्त गुणों का इस्तेमाल हम सभी जाने - अंजाने में कभी ना कभी जरूर करते हैं पर इनके महत्व के बारे में नहीं जानते हैं । जैसे अगर हमारा मूड खराब हो तो हम कोई गेम  ( खेल), विडियो, म्यूज़िक, कोई मजेदार चित्र , मोटिवेशनल बातें या कुछ और करते हैं जिससे कि हमें ऊर्जा मिल सके। 
अब हम ऊपर दिए गए गुणों के संदर्भ को विस्तार से समझेंगे । 





   हम जो महसूस करते हैं उसे आकर्षित   करते हैं  


"हम जो महसूस करते हैं उस वस्तु को और आकर्षित करते हैं।"  यह शब्द भगवान् महात्मा बुद्ध का है जो अपनेआप में किसी उदाहरण का मोहताज नहीं है। पर फिर भी हम तो ठहरे नये जमाने के जागरूक लोग हैं इसलिए बिना समझे या उदाहरण लेकर ही इसे सही मानेंगे।



 व्याख्या      

 जब हम कोई भी बात महसूस करते हैं तो उसकी छवि , चित्र, रूपरेखा, या आकृति हमारे दिमाग में अच्छी तरह से बनना प्रारंभ होता है या पहले से ही बना होता है। फिर इसके बाद इसकी क्रियाविधि शुरू हो जाती है और यह तय होने लगता है कि यह.. . काम कब होगा। यह बात हमारे दिमाग में बने चित्र की गुणवत्ता पर निर्भर करता है । जितना ही स्पष्ट चित्र उतना ही उस कार्य की होने की संभावना बढ़ जाती है  । अगर आप जितनी छोटी बात पर इसे टेस्ट करेगें तो आपको ऊतना ही जल्दी परिणाम मिलेगा और साथ ही साथ बडे़ काम पर इसे प्रयोग करने की प्रेरणा भी मिलेगी।  






  जब चाहो अपना मूड अच्छा करो   


 अपने मूड / मिजाज को लेकर काफी लोग परेशान रहते हैं । हम सबके मूड कभी ना कभी जरूर खराब हुआ होगा तब हमें कुछ करने का मन नहीं करता या नहीं लगता। पर अब हम सब अपने मिजाज को कुछ ही छण में ठीक कर सकते हैं। ऐसे समय में हमें ऐसी बातों को चित्ररूप देना चाहिए जो हमारे खराब मूड को विस्थापित करे या ठीक करदे। इसके लिए हमें वो बातें सोचना चाहिए जो हमारी जिंदगी में बहुत ही मजेदार पल रहा हो  । या आप कोई कॉमेडी विडियो, चित्र 😀😁😂😊😌 देखिए । आपको तुरंत फर्क दिखने लगेगा। 




   बुध्दिमान बनने के लिए      


 बुध्दिमान बनने के लिए आपको / हमें हमारे मन में बुध्दिमान होने की भावना होनी चाहिए और यह भावना कहाँ से आयेगी है ना। बुध्दिमान लोगों की कहानियों को पढ़ें / सुने या जाने। बुध्दिमान लोगों की विडियोज जरूर देखें क्योंकि उनमें उनके हाव - भाव देखने को मिलेंगे जो आपके / हमारे दिमाग को बुध्दिमान बनने में मदद करती है । 





  जैसा बनना है वैसी ही तस्वीरें देखें     



 जैसा बनना है वैसी ही तस्वीरें देखने से कोई वैसा बनता है क्या इसका कोई उदाहरण तो होना ही चाहिए तो पेश है 

उदाहरण : भगवान् बुद्ध ने कहा है कि "  जो आप सोचते हैं वैसा आप बन जाते हो।  " या हम जो भी आज है वो हमारी सोंच का नतिजा है। "

ऊपर दी गई बातें आपके गले नहीं उतरने वाली हैं क्योंकि इसमें यह कहा गया है कि जो भी आप / हम / कोई भी व्यक्ति सोचता है वह बन जाता है । आप कहेंगे कि मै तो सोचता हूँ कि मैं करोड़पति हो जाऊँ तो क्या मैं करोड़पति बन जाऊँगा ? 
हर बात के होने की कोई ना कोई शर्तें होती हैं।  इसकी भी निम्नलिखित शर्तें हैं :

  1. जो भी आप सोच रहे हो उसे पाने की  स्पष्ट या अतिआवश्यक वाली भावना होनी चाहिए  । 
  2. इसके बाद उसे पाने के लिए जितना हो सके प्रयास करना चाहिए। 
  3. जो भी आप सोच रहे हैं वो चीज जितनी छोटी होगी  उतनी ही जल्दी उसके मिलने की या होने की संभावना होगी । 
  4. बड़ी उपलब्धि हासिल करने के लिए लम्बे समय तक अपनी सोंच को बरकरार रखना पडे़गा। 







इन चारों बातों का मतलब साफ है कि अगर हम किसी चीज को पाने के लिए दिलोदिमाग से काम करें तो मिलना तय है ।
अगर एक उदाहरण दूँ कि याद करें वो चीज जिसे आप पाने के लिए आप दिनो रात सोचते थे कि कब मुझे मिल जाये। आप तबतक नहीं रूके, नहीं थके जब तक कि आपने उसे पा ना लिया हो। इसमें कुछ भी हो सकता सकता है जैसे : मोबाईल, टैब्लेट, गाड़ी, घड़ी, नौकरी आदि । 

हमने ऊपर पढा़ है कि भवनाओं को तीन रूपों में व्यस्त किया जा सकता है : 
1. तस्वीर के द्वारा
2. अपने चेहरे पर भावों को बनाकर 
3. बोलकर 


इन बातों से यह स्पष्ट है कि अगर हमें जो बनना है उस भाव वाली तस्वीरें, बातें देखें और सुने तो हमारे लिए वो बनने में मदद मिलेगी।  





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