Pratirodhon ko jodne ke tarike


प्रतिरोध (Resistor)

प्रतिरोध एक ऐसा डिवाइस है जो वैधुत धारा को रोकने का काम करता है। ये कई प्रकार के होते हैं जो अलग अलग स्थानों पर प्रयुक्त किये जाते हैं। इसके बिना इलेक्ट्रॉनिक सामानों को बनाने पर कभी भी खराब हो सकता है। अतः ये बहुत मुख्य तौर पर इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसो में प्रयुक्त किये जाते हैं। 




इसिलिये प्रतिरोधों का उपयोग लगभग हर इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं में किया जाता है। इसके उपयोग से ही इसकी महत्ता समझ में आती है क्योंकि यही वह तरिका है जिससे बल्बो को जलाने (बल्बो से उजाला ) के लिए इसको सही क्रम में जोड़ने की अथवा किसी भी सर्किट को बनाने में इनकी आवश्यकता पड़ती है। आईए देखते हैं >>

 परिभाषा (Difination)धारा के प्रवाह को कम करने वाले या जो धारा के मार्ग में अवरोध (रुकावट) उत्पन्न करता है उसे प्रतिरोध कहते हैं। इसे "Ω" व्यक्त किया जाता है। इसका मात्रक ओम * होता है।

* नोट: विद्युत चालकों में प्रतिरोध की खोज करने वाले जर्मन वैज्ञानिक का पुरा नाम जार्ज साइमन ओम था, इसी कारण प्रतिरोध का मात्रक उनके नाम पर पड़ा।


प्रतिरोधों को जोड़ने की विधियाँ Methods of connecting resistors


इसको जोड़ने की दो विधियाँ हैं -

  1. श्रेणी और
  2. समान्तरक्रम 

1.श्रेणीक्रम (ln Series)  

इस क्रम में एक प्रतिरोध के दूसरे सिरे से दूसरे प्रतिरोध के पहले सिरे से और तिसरे प्रतिरोध के पहले (इसी तरह से आगे भी) सिरे से दूसरे वाले प्रतिरोध के दूसरे सिरे से जोड़ते जाते हैं । उदाहरण के लिए निचे दिए गए चित्र को देखिए दिए


श्रेणीक्रम में प्रतिरोधों का संयोजन

इसका सूत्र

श्रेणीक्रम से जुड़े प्रतिरोधों को जोड़ने के लिए सूत्र
R = R1 + R2 + R3 +.. 
जहाँ R परिणामी (कुल) प्रतिरोध है जो R1, R2, R3, .. आदि के योग से प्राप्त होता है।

इस क्रम की विशेषता यह है कि इस तरिके से जोड़े गए प्रतिरोधों का योग अधिक से अधिक होता है समान्तरक्रम की तुलना में।
इसलिए इस क्रम में हम केवल प्रतिरोधों को जोड़ते हैं। इस विधि में कम से कम प्रतिरोधों को जोड़ने पर बहुत अधिक मान प्राप्त हो जाएंगे। इसके अलावा श्रेणीक्रम में हम प्रतिरोधों तब जोड़ते हैं जब हमें प्रतिरोध की आवश्यकता के साथ - साथ सर्किट सुरक्षा भी हो सकती है। जैसे अगर हमें प्रतिरोध को फ्यूज के स्थान पर लगा दे तो जब प्रतिरोध की क्षमता से अधिक सप्लाई एकाएक बढ़ जाती है तो प्रतिरोध जल जाता है और सर्किट सुरक्षित बच जाता है। इस प्रकार ऐसे स्थानों पर लगाए गए प्रतिरोध को फ्यूज प्रतिरोध कहते हैं।

उदाहरण    : चार प्रतिरोध जिनके मान क्रमशः 3Ω, 4Ω चार, 5Ω तथा, और 8 Ω  है जो एक दूसरे से श्रेणीक्रम में जुड़े हुए हैं। इनका परिणामी प्रतिरोध ज्ञात है किजिए 

   हल     चारो प्रतिरोध श्रेणीक्रम में हैं इसलिए सूत्र R = R1 + R2 + R3 + R4 से

तब परिणामी प्रतिरोध R = 3Ω + 4Ω + 5Ω + 8Ω =

                                  = 20 Ω(ओम)

इसी प्रकार से कितने ही प्रतिरोध क्यों ना जुड़े हों पर तब भी उनके मानों को सीधा जोड़ते चले जाना हैं।

चलिए अब जानते हैं समानान्तरक्रम के बारे में।


समान्तरक्रम (In Parallel) 

इस क्रम में सभी प्रतिरोधों के एक सिरे को एक बिंदु पर और दूसरे सिरे को किसी अन्य बिंदु पर संबंधित कर देते हैं। बिल्कुल चित्र के अनुसार



Samatarkram me pratirodon ka sanyojan



 इस चित्र में हम तीन प्रतिरोधों को समान्तरक्रम में जुड़े हुए देख रहे हैं। क्योंकि सभी प्रतिरोधों का पहला या एक सिरा बिंदु A से और दूसरा सिरा बिंदु B से जुड़ा हुआ है।

सूत्र और विशेषता  (Formula and feature) 

इसका सूत्र ऊपर चित्र में दिया गया है। इस क्रम की विशेषता यह है कि चाहे जितने भी प्रतिरोधों को जोड़ दें लेकिन हमेशा उनके परिणामी सबसे छोटे वाले प्रतिरोध से भी कम होंगे। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि समानान्तरक्रम में धारा को प्रवाहित होने के लिए पर्याप्त रास्ता मिल जाते हैं जिससे परिणामी प्रतिरोध कम हो जाता है।

उदाहरण: तीन प्रतिरोध क्रमशः 2Ω, 3Ω और 6Ω दूसरे एक दूसरे के समान्तरक्रम में जुड़े हुए हैं। इन तीनो प्रतिरोधों का कुल (परिणामी) ज्ञात है किजिए ।

हल: चुँकि तीनों प्रतिरोध समान्तरक्रम में जुड़े हुए हैं इसलिए सूत्र 1 / R = 1 / R1 + 1 / R2 + 1 / R3 से,

1 / R = 1/2 + 1/3 + 1/6 = 3/6 + 2/6 + 1/6 हरों  को बराबर करने पर

1 / R = 6/6 = 1 या R = 1 

तो देखा आपने परिणामी प्रतिरोध 1Ω आया है जबकि सबसे छोटा प्रतिरोध 2 Ω  है। 


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